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देश साल पहले प्रदेश की जनता के सामने एक नारा था'माफ़ करो महाराज,हमारा नेता तो शिवराज'.बावजूद इस नारे के जनता ने शिवराज की नहीं सुनी और महाराज को प्रदेश में भाजपा की डेढ़ दशक पुरानी सत्ता उखाड़ने वाला नायक बना दिया लेकिन डेढ़ साल में ही हालात बदल गए हैं ,अब महाराज को माफ़ करने का नारा देने वाले शिवराज और महाराज एक ही मंच पर खड़े होकर प्रदेश की 24 विधानसभा क्षेत्रों में जाकर दोबारा वित्त मांगने के लिए जाने की तैयारी कर रहे हैं .सवाल ये है कि अब जनता किसे माफ़ करे और किसे नहीं ?
डेढ़ साल पहले महाराज यानि ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना सबसे बड़ा और प्रबल प्रतिद्वंदी मानने वाले शिवराज सिंह ने सिंधिया और उनके परिवार के बारे में क्या-कुछ नहीं कहा था ?मै तो कहूंगा की घबड़ाये हुए शिवराज ने सारी मर्यादाएं तोड़ दी थीं ,बावजूद इसके उन्हें जनता ने खारिज कर दिया और महाराज कांग्रेस के उद्धारक बन गए .कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति ने अलप समय में ही अपने इस युवा नायक को जब भुलाना शुरू किया तो यही महाराज कांग्रेस की सरकार का तख्ता पलटने वाले खलनायक भी बन गए ,यानि महाराज के कहते में भाजपा के साथ कांग्रेस की सरकार का तख्ता पलटने का यश/अपयश दर्ज हो गया .
महाराज यानि सिंधिया ने अपना राजनीतिक वजूद बचने के लिए अपने और अपने पिता के नंबर एक के राजनितिक शत्रु भाजपा को ही अपना मित्र बनाते हुए प्रदेश में उन्हीं शिवराज को अपना नेता मानकर भाजपा की सरकार भी बनवा दी जिनकी सरकार कभी उन्होंने गिराई थी .महाराज के पास 22 जंगजू समर्थकों की एक ऐसी टुकड़ी है जिसने उनके लिए अपना राजनितिक भविष्य दांव पर लगते हुए विधानसभा की सदस्य्ता से इस्तीफा दिया है .इनमें से नेक ऐसे हैं जो शायद पहली बार और आखरी बार के लिए चुनाव जीते थे लेकिन उन्हें फिर एक अग्नि परीक्षा से गुजरना है .
आगामी तीन-चार महीने में कभी भी होने वाले विधानसभा के 24 सीटों के उपचुनावों में अब महाराज समर्थक 22 पूर्व विधायकों को दोबारा जिताने का जिम्मा अब अकेले महाराज का नहीं बल्कि शिवराज सिंह चौहान का भी है ,भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष बीड़ी शर्मा का भी है ,इसलिए ये अग्निपरीक्षा इन भाजपा नेताओं की भी है की वे जीवन बाहर कांग्रेसी रहे सिंधिया समर्थकों की झोली में भाजपा के कटटर मतदाताओं का समर्थन कैसे डलवाएं ?अव्वल तो ये एक कठिन काम है और दुसरे इसके लिए जनमानस भी राजी नहीं है .दो-ढाई महीने के लाकडाउन से ऊबे मतदाता इस उपचुनाव में कितनी दिलचस्पी लेंगे ,कोई नहीं जानता .
विधानसभा उप चुनावों के लिए कांग्रेस से भाजपा में आये सभी 22 पूर्व विधायकों को टिकिट देना भाजपा की नैतिक जिम्मेदारी है .भाजपा किसी भी सूरत में इनके टिकिट नहीं काट सकती ,केवल दो सीटें हैं जहां भाजपा अपनी पसंद के टिकिट दे सकती है .इन दो सीटों के लिए प्रत्याशी का च्ययन करना भी एक कठिन काम है .मान लीजिये दो सीटों के लिए भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को टिकिट दे भी दे तो क्या गारंटी है कि वे जीत ही जायेंगे ?इसी तरह क्या गारंटी है कि महाराज के सभी 22 समर्थक उप चुनाव जीत ही जायेंगे .जाहिर है कि इस जांबाज टुकड़ी में से यदि दो-चार भी चुनाव हार जाये तो महाराज की शक्ति क्षीण होगी और ऐसे में भाजपा उन्हें भाव देना काम कर देगी .
उपचुनावों को लेकर हालांकि ये एक कल्पना बाहर है किन्तु इसे नकारा नहीं जा सकता कि महाराज किसी भी सूरत में भाजपा में आने के बाद अपनी उपेक्षा स्वीकार नहीं करेंगे ,वे राज्य सभा चुनाव तक मौन धारण कर सकते हैं लेकिन यदि भाजपा नेतृत्व ने उनके साथ दगा किया तो वे एक बार फिर जोखिम लेकर भाजपा छोड़ सकते हैं .विसंगति ये है कि फिलहाल महाराज के कांग्रेस में वापस जाने की संभावनाएं बहुत क्षीण हैं क्योंकि इस समय गांधी परिवार भी उनसेखफ़ा है और गांधी परिवार के ख़ास कमलनाथ भी .दिग्विजय सिंह तो शायद ही महाराज की वापसी का समर्थन करें ऐसे में महाराज के सामने सीमित विकल्प हैं .वे या तो भाजपा में रहेंगे या फिर अपना नया दल बनायेगे .
विधानसभा उपचुनावों को लेकर भाजपा ने अपनी रणनीति को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है. कांग्रेस में अभी इन तैयारियों को लेकर खींचतान जारी है .कांग्रेस में सभी 24 सीटों पर प्रत्याशियों की भरमार है और जाहिर है कि प्रत्याशियों के चयन में दिग्विजय और कमलनाथ की ही अहम भूमिका रहने वाली है .ग्वालियर चंबल संभाग की 13 सीटों पर पूर्व मंत्री गोविंद सिंह की अहम भूमिका हो सकती है ,वे भिंड की मेंहगांव और गोहद सीट के अलावा दतिया की भांडेर और मुरैना की अम्बाह,मुरैना,सुमावली,जौरा और दिमनी सीट पर अपना तिलिस्म दिखा सकते हैं .इन 13 सीटों को जितने के लिए भाजपा के टिनोपाल मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा पर भी अहम जबाबदेही डाली जा सकती है .वे भी डॉ गोविंद सिंह की तरह तिलिस्मी नेता माने जाते हैं .
इन उप चुनावों की दिलचस्प बात ये है कि भाजपा के पास दलबदलुओं को जितने के लिए कोई नया नारा नहीं है जबकि कांग्रेस के पास दलबदलुओं पर प्रहार करने के तमाम बहाने हैं .कांग्रेस इस बहाने से सिंधिया के प्रभामंडल को भी धूमिल करणे का प्रयास करेगी ,क्योंकि कांग्रेसियों को पता है कि निकट भविष्य में महाराज के कांग्रेस में वापस लौटने की कोई उम्मीद नहींहै .महाराज का नुक्सान महाराज का अपना नुक्सान होगा न कि भाजपा या कांग्रेस का .अब देखते जाइये कि ऊँट इस बीच कितनी करवटें बदलता है ?
@ राकेश अचल
अब जनता किसे माफ़ करे सरकार ! *********